Toota Hun Par Jhuka Nahi
टूटा हूँ , पर झुका नहीं,
लड़खड़ाया पर रुका नहीं।
मदद की तो उसने सोचा बेवकूफ है,
इंसानियत थी, कि मैं फिर भी मुड़ा नहीं।
काफिर तक से दोस्ती की, सोचा साथ देगा,
पीछे मुड़के देखा तो कोई भी खड़ा नहीं।
पहचान उसकी भला कैसे ,
जो अपनी जड़ों से जुड़ा नहीं?
यूँ शिकायत तो बहुत थी तकदीर से, लेकिन
'माँ' ने सिखाया था, इसलिए कभी लड़ा नहींI

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